पत्थरों के बीच पीस रहा मनुष्य !
रख नीति को ताख पर,
जिन्दा लाश बन रहा मनुष्य !
पत्थर के हृदय में संवेदनशीलता ढूंढ़ रहा मनुष्य !
पत्थरों को पत्थरों से प्रेम,
वादों वचनों से वास्ता क्या!
इरादें उनके नेक नहीं!
मूढ़ता पहचान जान अज्ञानता को,
ज़ोर से ठहाके लगा रहा आसमान !
पत्थरों के बीच पीस रहा मनुष्य !
रख नीति को ताख पर,
जिन्दा लाश बन रहा मनुष्य !
अनैतिकता और क्रूरता से,
प्रपंचों की माला गूथ कर,
रच रहा पत्थर इतिहास,
आत्मविश्वास खोकर चापलूसी कर रहा मनुष्य!
पत्थरों में रक्त संचार नहीं यह भूल कर रहा मनुष्य!
पत्थरों के बीच पीस रहा मनुष्य !
रख नीति को ताख पर,
जिन्दा लाश बन रहा मनुष्य !
पत्थरों को धड़कने नहीं,
न तरंगे मष्तिष्क की,
स्वार्थ इनके तन ढ़कते,
घमण्ड इनके वाहन बनते,
पत्थरों के रासलीलाओं में रौशनी कर रहा मनुष्य!
समेट सपने आँखें चुरा रहा मनुष्य !
पत्थरों के बीच पीस रहा मनुष्य !
रख नीति को ताख पर,
जिन्दा लाश बन रहा मनुष्य !
पत्थरों ने काम सीखा,
तनाव भुखमरी बढ़ाने का!
तोड़ समाज के नियमों को,
ज़हरीली हवा फैलाने का!
माधुर्य संगीत को भूल,
समस्याओं पर अट्टहास करते यें,
नाचते और मृदंग बजाते,
विदेशी लीलाएँ चलती,
राजनीति के बिन बजाते यें,
साँपों की जगह मनुष्य नाचते,
झोली भर रूपए बनाते यें!
पत्थरों के बीच पीस रहा मनुष्य !
रख नीति को ताख पर,
जिन्दा लाश बन रहा मनुष्य !
रसलीलाएँ भंग करने को,
बहरे को चिग्घाड़ ध्वनि स्पर्श कराने को,
कर्णभेदी शब्दबाण चलाऊँगा!
अपने आखरी सासों तक,
उन बुतों को जलाकर,
मनुष्य को रौशनी दिखाऊंगा!
तोड़ कण-कण में पत्थरों को,
मनुष्यता का पाठ पढ़ाऊंगा!
मनुष्यता का पाठ पढ़ाऊंगा!
मनुष्यता का पाठ पढ़ाऊंगा!
राहुल कुमार सिंह