आज कल मैं बीमार चल रहा हूँ ,रिमझिम बारिश की बूंदों को देख कर यह अहसाश हुआ की कुछ लिखा जाये | हरे-हरे पेड़ों को देख कर बहुत आनंद आ रहा था तबियत कुछ अच्छी होने लगी | सूर्य कान्त त्रिपाठी ‘निराला ‘ के द्वारा की गई ऋतुओं का वर्णन मन में दौड़ने लगा , कालिदास के द्वारा वर्णित अभीज्ञानसकुंत्लम में प्रकृति की सुन्दरता का जो वर्णन हैं वह कालिदास के बुद्धि का परिचायक मात्र नहीं हैं बल्कि उनके चिंतन की असीम क्षमता को भी दर्शाता है | बुद्धिजीवियों के पास क्या होता है ? लोग अगर इन बातों को समझ ले तो बस कल्याण ही कल्याण हैं | बुद्धिजीवियों के पास आत्म उर्जा को कैसे संचारित किया जाये,कैसे उर्जा का जीवन में उपयोग किया जाये बस यही चिंतन विराजमान होता हैं ,जो बुद्धिजीवियों को दूसरों से भिन्न करता हैं | आज पुनः इस बात की चिंता समाज में उभर कर आने लगी हैं और चिंता हो क्यों न बात देश की तकदीर की जो है | पुनः चिंतन और मंथन का समय आ चूका है की क्या हमारा समाज सही दिशा की ओर है ? क्या आज समाज के निर्माताओं की भूमिका सही हैं ? क्या एक निश्चित समय का निर्धारण समाज से भुखमरी और कुपोषण मिटाने का हो चूका है ? क्या यह सच नहीं की दिशाविहीन हो कर हम अपने कर्तव्यों से मुहं मोड़ते जा रहे हैं ? समाज के नीति निर्धारक धर्मग्रंथों का अब मोल बस रह गया हैं | मनुष्यों की वो शक्ति अब कहाँ है ? जो कभी हमारें देश के महापुरुषों में थी | समाज का चिंतन करने वाले केवल राजनीति के चौहद्दी के अन्दर क्यों है ? समाज का कल्याण करने वाले हमारें देश के महापुरुष तो राजनीति का त्याग कर,भोग विलाष का त्याग कर अपना परिचय दे चुके हैं ? आज समाज कल्याण करने वाले या तो राजनीति से आते हैं या उनकी मनसा राजनीति में जाने की होती है | बस यही एक दुखद पहलु वर्तमान में नज़र आती है | भारत की पुरातन और सनातन संस्कृति ,भारत की संतानों को अहिंसा,त्याग और बलिदान के रास्तों पर चलने की शिक्षा देती है | पर,अगर सच्चें मन से यह सोच कर हम देखें,क्या हम अपनी संस्कृति की मान-मार्यादा का सम्मान कर रहे हैं ? क्या आज भारत की शरहदें पूर्णतया सुरक्षित हैं ? वैसे लोग जो विचारों के भवंर में हमेशा लोगों को फसा देते है ,जिनका मकसद केवल अपनी जेब भरना हैं | बिहार को अगर आगे बढ़ाना है तो अर्थ की राजनीति होनी चाहिए | कैसे प्रति व्यक्ति आय बढ़े केवल यह धेय होना चाहिए | अब बेबाक टिपण्णी कर या एक दूसरे पर कीचड़ उछाल कर कोई फायदा बिहार को नहीं होने वाला | बिहार की ८७ % जनसँख्या आज भी गांवों में रहती है | कैसे गाँव के लोगों के हालत में सुधार हो इसपर बहस होनी चाहिए | बिहार राज्य के अर्थ का आधार कैसे मजबूत हो यह बात होनी चाहिए | जात-पात की बात बहुत होती है ,गरीबों की बहुत बातें होती है ,तरक्की की बहुत बातें होती हैं पर प्रश्न है क्या हम सही रूप से जागरूक है अपने कर्तव्यों के प्रति ? क्या हम सही रूप से गरीबी मिटाने का संकल्प ले चुके है ? क्या बिहार के वरद पुत्र डाक्टर राजेंदर प्रसाद ,सतेन्द्र नारायण सिन्हा ,श्री कृष्ण सिंह और जय प्रकाश नारायण की बातों को हम जमीनी स्तर पर उत्तार चुके हैं ? क्या बिहार की युवा पीढ़ी सही रास्तों पर हैं ? पहले हम केवल अंग्रेजों के गुलाम थे | आज हम टीवी ,मोबाइल कम्पुटर ,सिनेमा ,ध्रूमपान ,घूश लेने की आदत और अशुरत्व के गुलाम हो चुके है | एक तरफ विदेशी ताकते इन सामानों को बेच कर अपनी अर्थ व्यवस्था को मजबूत कर रही है तो दूसरी तरफ भारत की युवा पीढ़ी को इसका उपयोग कर अपने देश को रीढ़विहीन कर रही हैं |
इंसान आज आधुनिकता के पीछे भाग रहा है | हर कीमत पर सबकुछ पा लेने की कोशिश कर रहा है और इसके लिए अपनी नैतिकता को ताखे पर रखता जा रहा है | विडम्बना यह है की इस भागम दौड़ में कही न कही अपने बच्चों से दूर होता जा रहा है | कैसे-कैसे टीवी पर गाने बज रहे है | क्या टीवी पर प्रचार आ रहें है और इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है युवा पीढ़ी पर ,इस पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा | सीला की जवानी और मुन्नी बदनाम हुई जैसे गाने माँ सरस्वती की पूजा के समय बजाये जा रहे है और बच्चों के साथ माता-पिता भी खूब झूम रहे है | बड़ी-बड़ी बाते हो रही है पर क्या समाज को ऐसी आधुनिकता चाहिए ? आज का युवा वर्ग मोबाइल और कम्प्यूटर का उपयोग करने की बजाए इसका दुरूपयोग करने लगा है और जब अभिभावक और शिक्षक इस बात को न करने की सलाह देते है तो युवा पीढ़ी आखें दिखाने में जरा भी संकोच नहीं करता | शहरों से ज्यादा बदतर स्थिति गाँवों की हो चुकी है, युवा पीढ़ी के हाथ में मोबाइल और उसपर बज रहे अश्लील गानों को आसानी से सुना जा सकता है | क्या युवा पीढ़ी को जागृत किये बिना हम एक स्वस्थ्य समाज की कल्पना भी कर सकते है ? क्या गाँवों को मजबूत किये वैगर किसी राज्य की अर्थ व्यवस्था के विषय में सोचा जा सकता है ? समय आ गया है की फिर से वैसे वीर पुत्रों को जनम लेने का जिनकी सोच स्वामी विवेकानन्द की तरह हो | जिस तरह से भारत की युवा पीढ़ी आधुनिकता की गुलाम होती जा रही है,जिस तरह से युवा पीढ़ी की नैतिकता में पतन हो रहें हैं वो किसी भी बौधिक को सोचने पर मजबूर कर सकता है | आज भारत के समाज को जरुरत है अच्छें शिक्षिकों की | आज भारत के समाज को जरुरत है अच्छें मार्गदर्शकों की | आज भारत के समाज को जरुरत है चाणक्य की जो फिर से भारत के सरहदों की रक्षा का पाठ पढ़ायें | क्या अब वो मश्तक नहीं जो युवा पीढ़ी की धारा भारत निर्माण की तरफ मोड़ सके ? क्या अब वो हाथ नहीं जो कृष्ण,राम और गौतम बुद्ध और गुरुनानक को गढ़ सके ? क्या अब वो भारत का पैर नहीं जो हिमालय को लाँघ सके ? क्या अब भारत की युवा-पीढ़ी की भुजावों में अब वो ताकत नहीं जो लड़ सके इस आधुनिकता की बुराइयों से ?
राहुल कुमार सिंह ,राजनीतिक लेखक एवं संपादक