Politics…..By Rahul Kumar Singh,Political Writer,Sobhi Dumra,Ara,Bhojpur,Bihar,India


Rahul Kumar Singh,Political Writer,Bihar,India

Rahul Kumar Singh,Political Writer,Bihar,India

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Rahul Kumar Singh,Political Writer,Bihar,India

Rahul Kumar Singh,Political Writer,Bihar,India

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आओ एक नया बिहार बनाएं…….द्वारा राहुल कुमार सिंह , राजनीतिक लेखक, शोभी डुमरा, आरा,बिहार( भारत ) Bihar Top News, Bihar Current News, Today News Patna
I love my Bihar...Rahul Kumar Singh,Political Writer

I love my Bihar...Rahul Kumar Singh,Political Writer

आओ एक नया बिहार बनाएं
चुनौती को अपना कर,
ज्यादा विवेकशील बिहार बनाएं।

राजनीति को पुनर्गठित कर,
ज्यादा सवेंदनशील बिहार बनाएं।

नए विचारों को अपना कर,
ज्यादा कल्याणकारी राज्य बनाएं।

शिक्षा के क्षेत्र में नए प्रयोग कर,
सर्वांगीण विकास करके,
ज्यादा बेहतर और सर्वश्रेष्ठ बिहार बनाएं।

भ्रष्टाचार को उखाड़ फेकने का नौजवानों एक नया संकल्प लें,
आओ एक नया समाज बनाएं।

अहम वक़्त आ गया है , सोये हुये को जागरूक कर,
ज्यादा विवेकशील, ज्यादा सवेंदनशील और उदार समाज बनाएं।

कुपोषण और भुखमरी को मिटाकर,
आओ एक नया बिहार बनाएं।

राहुल कुमार सिंह (राजनीतिक लेखक) शोभी डुमरा, आरा, बिहार ( भारत )

Our India is Great.......Rahul Kumar Singh Political Writer

Our India is Great.......Rahul Kumar Singh Political Writer

Need of Awakening and Arising of Youth of India………………By Rahul Kumar Singh,Political Writer

Need of Awakening and Arising of Youth of India...........By Rahul Kumar Singh,Political Writer

Need of Awakening and Arising of Youth of India................By Rahul Kumar Singh,Political Writer

Need of Awakening and Arising of Youth of India....By Rahul Kumar Singh,Political Writer

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Need of Awakening and Arising of Youth of India...........By Rahul Kumar Singh,Political Writer

Need of Awakening and Arising of Youth of India..............By Rahul Kumar Singh,Political Writer

Rahul Kumar Singh,Political Writer

Politics of India,Bihar,Uttar-Pradesh; Social,Transparency,Accountability&Moral…By Rahul Kumar Singh, Political Writer,Sobhi Dumra,Ara,Bhojpur

Politics of India; Social,Transparency,Accountability&Moral…By Rahul Kumar Singh, Political Writer,Sobhi Dumra,Ara,Bhojpur

Politics of India; Social,Transparency,Accountability&Moral…By Rahul Kumar Singh, Political Writer,Sobhi Dumra,Ara,Bhojpur

Politics of India; Social, Transparency, Accountability&Moral..….................By Rahul Kumar Singh, Political Writer, Sobhi Dumra, Ara, Bhojpur

Politics of India; Social, Transparency, Accountability&Moral..…..................By Rahul Kumar Singh, Political Writer, Sobhi Dumra, Ara, Bhojpur

Politics of India; Social, Transparency, Accountability&Moral........…By Rahul Kumar Singh, Political Writer, Sobhi Dumra, Ara, Bhojpur

Politics of India; Social, Transparency, Accountability&Moral..…......By Rahul Kumar Singh, Political Writer, Sobhi Dumra, Ara, Bhojpur

Politics of India; Social, Transparency, Accountability&Moral.....…By Rahul Kumar Singh, Political Writer, Sobhi Dumra, Ara, Bhojpur

Politics of India; Social, Transparency, Accountability&Moral.....…By Rahul Kumar Singh, Political Writer, Sobhi Dumra, Ara, Bhojpur

Politics of India; Social,Transparency,Accountability&Moral…..By Rahul Kumar Singh, Political Writer,Sobhi Dumra,Ara,Bhojpur

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Nitish Kumar Bihar Chief Minister

Nitish Kumar Bihar Chief Minister,Rahul Kumar Singh Political Writer

Need of Awakening and Arising of Youth of India...........By Rahul Kumar Singh,Political Writer

Need of Awakening and Arising of Youth of India................By Rahul Kumar Singh,Political Writer

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Need of Awakening and Arising of Youth of India.......By Rahul Kumar Singh,Political Writer

Need of Awakening and Arising of Youth of India...........By Rahul Kumar Singh,Political Writer

Need of Awakening and Arising of Youth of India..............By Rahul Kumar Singh,Political Writer

Rahul Kumar Singh,Political Writer

भारतीय संस्कृति से विलुप्त हो रही है – नैतिकता……….. राहुल कुमार सिंह ( राजनीतिक लेखक ), शोभी डुमरा, आरा, बिहार ( भारत )

Rahul Kumar Singh,Political Writer at Sobhi Dumra,Ara,Bihar

Rahul Kumar Singh,Political Writer at Sobhi Dumra,Ara,Bihar

मनुष्य जीवन में नैतिकता एक अत्यंत महत्वपूर्ण भाव है। मनुष्य को उदार, सह्वदय, संवेदनशील एवं प्रेममय बनाने वाला जो आदर्शभाव है, वह नैतिकता ही है। नैतिकता भाव की महत्ता एवं उच्चता के आधार पर ही इसे सत्य, प्रेम एवं अहिंसा जैसे शाश्वत धार्मिक लक्षणों में शामिल किया गया है। सुख का कारण नैतिकता है। नैतिकता इंसान की एक ऐसी खूबी है जो उसे स्वत: अच्छाइयों की ओर ले जाती है। नैतिकता का अर्थ है- दूसरों के हित का काम। धार्मिक दृष्टिकोण के सोचें या वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, सिद्ध यही होता है कि सभी मनुष्यों एवं प्राणियों का जन्म एक ही तत्व या शक्ति से हुआ है।अनुभवी लोग कहते हैं कि अपने लिए पशु भी जी लेते हैं मनुष्य जीवन की सार्थकता तो इसी में है कि वह औरों के लिए, समाज के लिए, विश्व के लिए और अंतत: प्राणीमात्र के लिए भी अपना समय और संपत्ति लगाए खर्च करें। एकमात्र मनुष्य को ही नैतिकता जैसी उच्च भावनाएं प्राप्त है।इसमें किसी को क्षमा करने की भावना आपको ऐसी प्रवृत्ति की ओर ले जाती है कि नुकसान पहुंचाने वाले को भी आप क्षमा कर सकें।
Rahul Kumar Singh,Political Writer at Sobhi Dumara,Ara,Bihar,India

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आप महसूस कर सकते हैं कि ऐसा कहना तो आसान है पर व्यावहारिक रूप में लाना मुश्किल। आपका कहना सही है, लेकिन आप कुछ विशेष हैं, इसलिए आप ऐसा कर सकते हैं। यदि हम अपनी जीवन शैली और अपने मन पर नियंत्रण कर लें, तो निश्चित रूप से सुखी हो सकते हैं। जरा से दुख में हताश होने से जीवन सार्थक नहीं बन सकता। जितनी योग्यता हम में है, उसी के आधार पर प्रतिफल मिला है, यह सोचने मात्र से हमारा जीवन सुखमय हो जाएगा। अपने ज्ञान, बल, सामथ्र्य व उपलब्ध साधनों से जो मैंने कर्म किया उससे अधिक की इच्छा मैं कैसे कर सकता हूं। यदि इससे अधिक पाने की इच्छा हो, तो हमें अपनी योग्यता, ज्ञान, बल, सामथ्र्य को बढ़ाना चाहिए। अगर हमारी दृष्टि प्रतिफल पर जाती है, तो योग्यता पर भी जानी चाहिए। परमात्मा न किसी को सुखी करता है न किसी को दुखी। सुख-दुःख स्वयं के अच्छे-बुरे कर्मों का परिणाम हैं। जब आत्मा सत्कर्म में प्रवृत्त होती है तो सुख मिलता है और जब अनैतिक और पाप के कार्यों में प्रवृत्त हो जाती है तो वह दुःख रूप होती है। सुख और दुःख जीवन के दो पहलू हैं। जीवन में दुःख में से सुख निकालने की कला सीखनी चाहिए। जैसे कमल कीचड़ में पैदा होता है वैसे ही सुख भी दुःख के कीचड़ में पैदा होता है। नैतिकता ईश्वर का उपहार है। मनुष्य को जन्म से ही ईश्वर ने नैतिकता की भावना के रूप में एक अनुपम उपहार दिया है। किसी को दुखी, अभावग्रस्त, रोगी, असमर्थ देखकर हर संवेदनाशील मन में नैतिकता की भावना जन्म लेती है। नैतिकता की संवेदनाएं मनुष्य को परोपकार, सेवा और त्याग के लिए प्रेरित करती हैं। नैतिकता आपके कार्यो में झलकनी चाहिए। यही आपके चरित्र की पहचान है। यह आपके व्यक्तित्व को मजबूती प्रदान करती है। कभी ऐसा न सोचें कि जरूरत पड़ने पर वह व्यक्ति आपकी कोई मदद नहीं करेगा, और न ही कभी मन में बदले की भावना पालें। ऐसा करने से आप अपनी कीमती ऊर्जा को बेकार की चीजों में उलझाए रखेंगे। ऐसा सोचने की बजाय बदले की भावना को जल्द से जल्द अपने मन से निकाल फेंकें। यदि संसार के किसी भी हिस्से में कोई मनुष्य या प्राणी दु:खी और अभावग्रस्त है तो प्रत्येक व्यक्ति का यह धर्म कर्तव्य है कि वह उसकी सेवा सहायता करे। किसी को दु:खी, दरिद्र एवं अभावग्रस्त देखकर उसकी मदद न करना अनैतिकता , पशुता, हृदय की कठोरता एवं संवेदन हीनता का प्रमाण है।हमारे जीवन में अनैतिकता का एक कारण लोभ भी है। यदि मन में किसी चीज का लोभ है, तो निश्चित ही जीवन में कभी तृप्ति नहीं मिल सकती। विद्वानों का मत है कि अपने असंतोष पर विचार करते समय हमें उन अभावग्रस्त लोगों की ओर भी देखना चाहिए, जिन्हें एक समय का भोजन भी नसीब नहीं है। उनके पास न पहनने को है, न रहने को। यदि हम केवल सफल और समृद्ध लोगों को देखेंगे तो हम हमेशा दुखी रहेंगे। विडंबना यह है कि जिनके पास सब कुछ होता है, वे भी अपनी स्थिति से असंतुष्ट रहते हैं। ज्ञानीजन यह भी कहते हैं कि अनेक विषयों और सुखों से उत्पन्न आनंद कभी भी वास्तविक सुख या आनंद नहीं होता। आनंद का अर्थ है मन का शांत रहना और चित्त में चिंता का नहीं होना। मनुष्य या अन्य जीवन को दुखी देखकर ह्वदय में जो दया की भावना जन्म लेती है, वह नैतिकता कहलाती है। दूसरे को दुख में, कष्ट में अथवा पतित अवस्था में देखकर स्वयं द्रवित हो जाना, दुखी हो जाना नैतिकता के कारण ही होता है। नैतिकता को धर्म का अंग माना गया है, क्योंकि वह मनुष्य को सेवा, सहायता अथवा परोपकार की प्रेरणा देती है। नैतिकता ही मनुष्य को प्रेरित करती है कि वह अपना स्वार्थ भूलकर दूसरों की सेवा एवं सहायता करे।
नैतिकता का भाव मनुष्य को संवेदनशील बनाकर मानवीयता का पाठ पढ़ाता है। मनुष्य को संकीर्णता से मुक्त करके प्राणीमात्र के प्रति प्रेम और अपनत्व जगाने में नैतिकता का ही योगदान है। घोर स्वार्थी और कठोर हृदय व्यक्ति ही किसी को दु:खी देखकर उसकी सेवा सहायता किए बिना रह सकता है। परोपकार धर्म को संसार के सभी धर्मों ने अत्यंत महत्वपूर्ण माना है। हिंदू धर्म में कहा गया है ‘परहित सरिस धर्म नहीं कोई, इस्लाम की मान्यता है कि जिसका पड़ोसी दु:खी है वह सच्चा मुसलमान नहीं है, ईसाई धर्म की मान्यता है कि- स्वयं भूखे रहकर, अपना हिस्सा जरूरतमंद को दे देना ही सच्ची मनुष्यता है। इस प्रकार संसार के समस्त प्राणी आपस में सगे भाई-बंधु है।नैतिकता ईश्वर द्वारा मनुष्य को प्रदान किया गया अमूल्य वरदान है। नैतिकता मनुष्य को स्वार्थ और मोह के दायरे से बाहर निकालकर संपूर्ण संसार के साथ जोड़ती है। नैतिकता ऎसी भावना है, जो अपने और पराए शब्द का भेद नहीं करती है। अत: हम कह सकते हैं कि नैतिकता मनुष्य को जन्म से प्राप्त ऎसी भावना है, जो उसे संपूर्ण प्राणियों से प्रेम, अहिंसा, दया, सच्चा धर्मसत्य, अपनत्व एवं अभिन्नता का पाठ पढ़ाती है।

राहुल कुमार सिंह ( राजनीतिक लेखक ), शोभी डुमरा, आरा, बिहार ( भारत )

सच्चा प्यार सकारात्मक ऊर्जा का अहसास……राहुल कुमार सिंह , राजनीतिक लेखक , शोभी डुमरा, आरा, बिहार ( भारत )
प्रेम प्रेम सब कोउ कहत, प्रेम न जानत कोइ।जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोइ॥ प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।।किसी ने सच ही कहा है कि अगर हम अपने जीवन में इन दोहे को वास्तविक रुप से कार्य में लाएं तो जीवन एक आदर्श और सफल जीवन बन सकता है। जीवन की डगर और भी सुहानी हो सकती है।वास्तव में `हिंसा और `अहिंसा हमारे मन की दशा है, जो हमारे कर्मों में चरितार्थ होती चली जाती है। अपने व्यक्तित्व से किसी को सुकून और सुखद अहसास से भर देना जहां अहिंसा है, वहीं अपने भदेसपन और अपने अहं से किसी के अन्दर घृणा का भाव उत्पन्न कर देना हिंसा है। सकारात्मक ऊर्जा आसपास के वातावरण को प्राणवान बना देती है, जबकि नकारात्मक ऊर्जा वातावरण को बोझिल और तनाव से भर देती है। यह दो ऐसा व्यक्तित्व है जो अपनी मौजूदगी से सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा का अहसास कराता है।’पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित हुआ न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होय।’ पोथी पढ़-पढ़कर संसार में बहुत लोग मर गए लेकिन विद्वान न हुए पंडित न हुए। जो प्रेम को पढ़ लेता है वह पंडित हो जाता है। प्रेम एक घंटा पढ़ने की चीज नहीं है। पूरा जीवन पढ़ा जाता है तब कहीं प्रेम उदय होता है और नहीं भी होता। जब प्रेम उदय होता है तब वह किसी एक के लिए नहीं होता सबके लिए होता है। प्रेम चतुर्दिक होता है। जैसे आग की लौ सबके लिए गरम होती है। वह किसी के लिए शीतल और किसी के लिए गरम होती है ऐसी बात नहीं, सबके लिए एक समान होती है।वास्तव में हर व्यक्ति के व्यक्तित्व में कई ऐसे पहलू होते हैं जो दूसरों को अपनी ओर अनायास ही खींच लेते हैं तो कुछ पहलू हमारे अन्दर वितृष्णा भी पैदा करते हैं। कोयल की मधुर आवाज, फूलों की महक, हर तरफ छाया प्यार का खुमार यकायक ही हमें हमारे प्रिय की याद दिलाने लगता है और अगर हमारे जीवन में अब तक कोई खास नहीं है तो उस खास के मिलने की आस जगाने लगता है। जीवन में प्यार तो सभी करते हैं लेकिन किसी से सच्चा प्यार करना, उसे जीवनसाथी के रूप में पाना, उन चन्द लोगों के हिस्से में आता है जो सच्चे प्यार की कसौटी पर खरे उतरते हैं और जो खुद को हमेशा वफादार और लायक साथी साबित करते हैं। सच्चा प्यार वो होता है जो वक्त और हालात के साथ न बदले।प्यार… ढाई अक्षर का यह शब्द न जाने दिल को कितने अहसास करा जाता है। शायद इसलिये कि प्यार गुलाब की पंखुड़ी पर ठहरी ओस की उस नाजुक बूंद के समान होता है जिसको सहज कर रखने में तमाम उम्र निकल जाती है…प्यार शब्द ही ऐसा है जिसके ख्याल मात्र से शरीर में अजीब सी सिरहन हो उठती है। शायद ही दुनिया में कोई ऐसा इंसान होगा जिसने अपनी जिन्दगी में किसी एक को सच्चे दिल से न प्यार किया हो(ध्यान दें केवल सच्चा प्यार)…औऱ प्यार कभी मरता नहीं है, प्रेम एक ऐसी खुशी है जो कल था, आज है और हमेशा रहेगा… अगर आपका प्यार सच्चा है तो बस कुछ नहीं चाहिए आपको क्योकिं दुनिया की सबसे बड़ी ताकत आपके पास है। एक नई रिसर्च के अनुसार ऊंची आवाज में बात करने वाली महिलाएं और धीमी आवाज में बात करने वाले पुरुष अपने जीवनसाथी को धोखा दे सकते हैं। ‘इवोल्यूशनरी साइकोलॉजी’ नामक जर्नल में छपी रिपोर्ट के अनुसार रिसर्चरों ने आवाज के इस उतार-चढ़ाव को भविष्य में साथियों के साथ किए जाने वाले धोखे के संकेत के रूप में देखा है। कनाडा की मैकमास्टर यूनिवर्सिटी की रिसर्च टीम के अनुसार महिलाओं की ऊंची आवाज और पुरुषों की धीमी आवाज उन्हें एक-दूसरे को भविष्य में धोखा देने के संकेत हो सकते हैं।मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि हर व्यक्ति के उस खास पहलू को उभारने से एक स्वस्थ्य और सामांजस्य पूर्ण सम्बंध का विकास होता है। किसी व्यक्ति के खास पहलू में एक चुंबकीय अहसास होता है, जिसमें दूर तक व्यक्ति खिंचता चला जाता है। स्वयं वह व्यक्ति अपने व्यक्तित्व के उस पहलू से काफी हद तक अनजान होता है। उसे तब तक पता नहीं चलता जब तक कि दूसरा उसे उसकी खूबियों के बारे में खुल कर न बताए। शास्त्रों के मुताबिक शिव-शक्ति एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। शिव शक्ति के बल पर तो शक्ति शिव के सहारे जगत का तमाम सुखों से कल्याण करते हैं। जगत की सृजन, पालन व संहार में स्त्री-पुरुष के योगदान व महत्व को उजागर करने वाला शिव-शक्ति चरित्र से जुड़ा अर्द्धनारीश्वर रूप जगत प्रसिद्ध व पूजनीय है। शिव-पार्वती, उमा-शंकर, शिव-सती के प्रसंग भी भगवान शिव व जगतजननी की रचना, पालन व विनाशक शक्तियों की महिमा गाते हैं। हिंदी फ़िल्म इतिहास की एक ऐतिहासिक फ़िल्म रही है ‘मुग़ल-ए-आज़म’ जो फ़िल्मी इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय है। इस फ़िल्म ने वह इतिहास क़ायम किया है कि जब भी हिंदी फ़िल्म इतिहास के १० सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों की सूची बनायी जाती है तो इस फ़िल्म का शुमार ज़रूर होता है। और जब फ़िल्म संगीत के १० सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों की बात चलती है तो इसी फ़िल्म का “जब प्यार किया तो डरना क्या” का ज़िक्र ज़रूर होता है। इस गीत को फ़िल्म संगीत इतिहास का सबसे रोमांटिक गीत भी कहा जाता है।सबसे रोमांटिक ये सदाबहार नग़में जितने भी सुने जायें मानो दिल ही नहीं भरता वह आपके सम्मुख प्रस्तुत है। इन्सान किसी से दुनिया में इक बार मुहब्बत करता है,इस दर्द को लेकर जीता है, इस दर्द को लेकर मरता है,प्यार किया तो डरना क्या जब प्यार किया तो डरना क्या,प्यार किया कोई चोरी नहीं की प्यार किया…,प्यार किया कोई चोरी नहीं की छुप छुप आहें भरना क्या,जब प्यार किया तो डरना क्या,प्यार किया तो डरना क्या जब प्यार किया तो डरना क्या,आज कहेंगे दिल का फ़साना जान भी लेले चाहे ज़माना,मौत वोही जो दुनिया देखे,मौत वोही जो दुनिया देखे घुट घुट कर यूँ मरना क्या,जब प्यार किया तो डरना क्या,प्यार किया तो डरना क्या जब प्यार किया तो डरना क्या,उनकी तमन्ना दिल में रहेगी, शम्मा इसी महफ़िल में रहेगी,इश्क़ में जीना इश्क़ में मरना,इश्क़ में जीना इश्क़ में मरना और हमें अब करना क्या,जब प्यार किया तो डरना क्या,प्यार किया तो डरना क्या जब प्यार किया तो डरना क्या,छुप न सकेगा इश्क़ हमारा चारों तरफ़ है उनका नज़ारा,परदा नहीं जब कोई खुदा से,परदा नहीं जब कोई खुदा से बंदों से परदा करना क्या,जब प्यार किया तो डरना क्या,प्यार किया तो डरना क्या जब प्यार किया तो डरना क्या,प्यार किया कोई चोरी…
इस बार वेलेंटाइन डे पर अनोखा संयोग बन रहा है। इस दिन प्रपोजल के साथ ही शादी भी कर सकते हैं। ऐसा संयोग बहुत कम बनता है। ज्योतिष के नजीरिये से देखा जाए तो इस बार प्यार का त्यौहार ज्यादातर प्रेमियों के लिए कुछ खास रहेगा। वेलेंटाइन डे को तो प्यार का मौसम कहा गया है। हर साल इसी मौसम में सबसे ज्यादा प्रेमी युगल अपने रिश्तों को नया आयाम देते हुए शादी के खूबसूरत बंधन में बंध जाते हैं और ऐसा होना भी लाजमी है क्योंकि इस मौसम की हवाओं में भी प्यार ही बसता है तो फिर लोगों के दिलों में प्यार ही प्यार होनास्वाभाविक सी बात है। एक-दूसरे की बांहो में बांहों डाले हुए अपनी ही दुनिया में मशगूल प्रेमी जोड़ों को देखना अपने आप में एक सुखद अनुभुति है। इन्हें देखकर यूं लगता है मानो समाज में बुराई, नफरत, जलन, ईर्ष्या इन जैसी चीजों के लिए तो कोई जगह ही नहीं बची है बस सब के ऊपर प्यार की खुमारी छाई हुई है, लेकिन यह सब सिर्फ हमारी सोच तक ही सीमित रह जाता है असल जिंदगी में तो इसका ठीक उल्टा ही होता दिखाई देता है। हवाओं में हल्का सा सर्दपन लिए हुए वेलेंटाइन डे मौसम अपने आप ही हमारे मन में एक अलग सी अनुभूति भर देता है। इस मौसम में हमारा मन प्यार में खो जाने का, अपनी अलग रंगीन दुनिया बसाने का और प्यार में ही मर मिट जाने को लालायित होने लगता है। सच्चा प्यार तो महज सकारात्मक ऊर्जा का एक अहसास है जो कब, कहां, किसके लिए जाग जाए यह पता ही नहीं चलता। इस अहसास में सब-कुछ अच्छा लगने लगता है, सारी दुनिया रंगीन नजर आने लगती है। हमें तो बस प्यार का नशा होने लगता है। प्रेम विवाह करने वाले लडके व लडकियों को एक-दुसरे को समझने के अधिक अवसर प्राप्त होते है। इसके फलस्वरुप दोनों एक-दूसरे की रुचि, स्वभाव व पसन्द-नापसन्द को अधिक कुशलता से समझ पाते है। प्रेम विवाह करने वाले वर-वधू भावनाओ व स्नेह की प्रगाढ डोर से बंधे होते है। ऎसे में जीवन की कठिन परिस्थितियों में भी दोनों का साथ बना रहता है।

राहुल कुमार सिंह (राजनीतिक लेखक) शोभी डुमरा, आरा, बिहार ( भारत )
क्रोध में चुप रहना सबसे बड़ा संयम………..राहुल कुमार सिंह , राजनीतिक लेखक , शोभी डुमरा, आरा, बिहार ( भारत )
भाव-उद्वेग में चुप रहना सबसे बड़ा संयम है । क्षणिक आवेश में पति पत्नी ऐसा कुछ कर डालते हैं जिससे उनके सामने कोई बड़ी आफत आ जाती है और घर बर्बाद हो जाता है। यहां तक कि प्राण पर भी संकट मंडराने लगता है। किसी को भी गुस्सा आना स्वाभाविक है लेकिन इस गुस्से के कारण आप कई बार अपना ही नुकसान कर बैठते हैं। ऐसे में क्रोध नियंत्रण करना जरूरी है। गुस्सा जाहिर करने की जगह गुस्सा नियंत्रण करना सीखना चाहिए जिससे संबंधों में दरार आने से बचाई जा सकें। यदि आपको बहुत अधिक गुस्सा आता है तो आपके लिए जानना जरूरी है कि संबंधों में गुस्से पर कैसे नियंत्रण करें, गुस्सा आने पर खुद को कैसे संभाले।

Anger

Anger


जब आप तनावग्रस्त होते हैं, तो आपका जिस्म एड्रिनॉलीन नामक रसायन का उत्पादन करता है, जो आपके जिस्म में कम से कम 18 घंटे तक रहता है। आपको यह अजीबोगरीब लग सकता है लेकिन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि तनावग्रस्त मां को बेटी होने की संभावना ज्यादा होती है।वैज्ञानिकों ने पाया कि गर्भावस्था से पहले घर में, कार्यालय में और वैवाहिक जीवन में दबाव का सामना करने वाली महिलाओं में बेटी होने की संभावना बेटा होने के मुकाबले ज्यादा होती है। प्रतिदिन घूमने, व्यायाम करने, डांस करने कोई गेम खेलने इत्यादि एक्टिविटी में भाग लेने से आपमें सकारात्मक ऊर्जा आती है जिससे आप आसानी से फ्रेश रहकर गुस्से से दूर रह सकते है। खुशी, गुस्से को दुर करने में सहायक है, इसीलिए अधिक से अधिक खुश रहने की कोशिश करें।एक अध्ययन में पता चला है कि अहंकारी पुरूष ज्यादा तनावग्रस्त रहते हैं। जब आपको गुस्सा आएगा तो निश्चित रूप से आप उसकी भड़ास किसी न किसी पर निकालेंगे, ऐसे में जरूरी हो जाता है कि आप खुद को संभाले, अन्यथा आप या तो अपना नुकसान कर बैठेंगे या फिर अपने संबंधों को खराब कर लेंगे। अध्ययन में सामने आया है कि अहंकारी पुरूष न सिर्फ दूसरो को ठेस पहुंचाते हैं बलिक वे खुद की सेहत पर भी चोट करते हैं। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार अहंकारी लोग ज्यादा तनाव में रहते हैं जो उनके स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है।
अपनी आँखें बंद करके गहरी साँस लें और सोचें कि तनाव आपसे दूर जा रहा है। इससे आप शांत हो जाएँगे और रिलेक्स महसूस करेंगे। अगर आप बार-बार गुस्सा करते हैं, तो एड्रिनॉलीन नामक रसायन की मात्रा आपके जिस्म में बढ़ती जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार इसे अपने शरीर से बाहर निकालने का सबसे अच्छा तरीका कसरत है। भाव-उद्वेग की स्थिति में विवेक मनुष्य का साथ छोड़ देता है और मनुष्य अनुचित कर्म कर बैठता है । एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत की सर्वाधिक महिलाएं तनाव में रहती हैं।दुनिया के प्रमुख विकसित एवं विकासशील देशों में आज की भाग-दौड़ और आपाधापी से होने वाले तनाव के बारे में किए गए इस सर्वेक्षण में कुल 21 विकसित एवं विकासशील देशों को शामिल किया गया था।विश्व सूचना एवं विश्लेषक कंपनी नीलसन की टोक्यो में प्रकाशित सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा 87 प्रतिशत भारतीय महिलाओं ने बताया कि ज्यादातर समय वे तनाव महसूस करती हैं। जबकि 82 प्रतिशत भारतीय महिलाओं ने कहा कि उन्हें आराम करने का वक्त नहीं मिलता।इसलिए दिन में समय निकालें (सुबह ज्यादा बेहतर है) कि आप तेज चहलकदमी, तैराकी या जिममें आधा घंटे तक वर्कआउट कर सकें। जल्दबाजी गुस्से के लिए माहौल बनाती है। प्रतिरोध जताने के लिए चीखने के लालच से बचें। गुस्सा भाव-उद्वेग का ज्वलंत रूप है । गुस्से में जो मौन को साध कर अंतस-चित्त का अध्ययन करता है, वह शांत होना सीख जाता है । व्यक्ति के जीवन में प्रेम एक ऐसी भावना है जो उसे सभी नकारात्मक विचारधाराओं से दूर रखती है। इसके अलावा प्रेम हमारे भीतर जीने की एक नई उमंग को भी विकसित करता है। व्यक्ति चाहे कितना ही परेशान क्यों ना हो, किसी ऐसे व्यक्ति का अहसास ही उत्साहित करने के लिए काफी है कि कोई उससे बेहद प्यार करता है।ऑफिस में काम का दबाव हो या फिर घर और बच्चों की बढ़ती जिम्मेदारियां या फिर चाहे आप लंबे ट्रैफिक जाम में फंसकर ही घर क्यों ना लौट रहे हों, प्यार आपको हर मुश्किल से बाहर निकालने में मदद करता है। तनावग्रस्त महिलाएं अपने बच्चों की परवरिश सही तरीके से नहीं कर पाती हैं और उनके प्रति कठोरता से पेश आती हैं। अमेरिका के रोचेस्टर विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने अपने एक अध्ययन में बताया है कि जिन महिलाओं में अवसाद का स्तर अधिक होता है, वे अपने बच्चों के साथ काफी सख्ती के साथ पेश आती हैं। आपको छोटी-छोटी बात पर गुस्सा आ जाता है तो इसका अर्थ है कोई न कोई इसका कारण जरूर है जिसे आप खोजने में असमर्थ है। ऐसे में आपको गुस्सा आने वाले कारणों पर ध्यान देना चाहिए और वह काम दोबारा न हो, इसका भी ख्याल रखना चाहिए।गुस्से को शांत करने का सबसे आसान तरीका है कि अपनी मांसपेशियों को रिलेक्स करें। सिर्फ मुट्ठी को खोलने और जबड़े को रिलेक्स करने से आप शांत हो सकते हैं। गहरी साँसें लेने से एंग्जायटी आपके शरीर से बाहर चली जाएगी। कुछ खुशगवार चीजों के बारे में सोचने लगें। अपने आपसे कुछ सकारात्मक बातें दोहराएँ- मैं अच्छा महसूस कर रहा हूँ और सब कुछ ठीक-ठाक है। इस तरह भी काम बन सकता है। दबा हुआ तनाव अच्छी महक के सहारे जिस्म से रफूचक्कर हो जाता है। इसलिए खुशबूदार तेलों का प्रयोग करें। शुद्ध लेवेंडर तेल टिश्यू पेपर पर डालकर उसे अपनी जेब या पर्स में रख लें या किसी ऐसी जगह पर जहाँ तनावपूर्ण स्थितियों में उसे आसानी से निकाला जा सकता हो। गुस्से में कोई कदम उठाने के बाद उसके परिणाम भी भुगतने पड़ जाते हैं। इसलिए गुस्से में कुछ करने से पहले बाद में होने वाले परिणामों के बारे में सोचने की कोशिश करें।गुस्सा होने के बजाय जिन लोगों पर या जिन कारणों पर आपको गुस्सा आता है उनको सुलझाएं और परिस्थितियों को समझे और लोगों को माफ करना व माफी मांगने की आदत डालें। इससे आप आसानी से अपने गुस्से को काबू कर पाएंगे।
Rahul Kumar Singh,Political Writer

Rahul Kumar Singh,Political Writer

कई बार आप जो सोच रहे होते हैं उससे विपरीत होने पर आपको गुस्सा आता है। गुस्सा रोकने के लिए आवश्यक है कि ध्यान कहीं और लगाएं। जब गुस्सा आ रहा हो तो उस जगह से चले जाएं। गुस्से को कम करने के लिए आप व्यायाम भी कर सकते हैं। या फिर गहरी सांस लें या 1 से 10 तक गिनती करें।वहां रहेंगे तो गुस्सा और बढ़ेगा। वहां से चले जाने पर ध्यान झगड़े से हट जाएगा। लेकन यह भी सोचे की यह जरूरी नहीं जो आप सोच रहे हैं हमेशा वही हो या फिर हर परिस्थिति एक जैसी नहीं होती इस बात को स्वीकारें।गुस्सा आने पर आपको चाहिए कि आप भावेश में न आएं बल्कि खुद को नियंत्रित करें और कुछ भी बोलने से पहले दो बार सोचे। गुस्सा आने पर आप आवेश में आकर अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं। इसीलिए जरूरी है कि आपको अहसास हो इस बात का कि गुस्से में आपसे कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर होती है। कई बार दोस्तों, पति-पत्नी या परिवार के बीच कुछ गलतफहमियां या टकराव हो जाता है, जो गुस्से का कारण बनता है। ऐसे में बात करके गिले शिकवे दूर करें। बात करने से आपसी गलतफहमी भी दूर होगी और सब सामान्य हो जाएगा। अगर ट्रैफिक जाम की वजह से गुस्सा आ रहा है, तो अपनी कार में रखे हास्य व मनोरंजन से भरे टेप बजाएँ ताकि आपका ध्यान बँट सके। हकीकत में शायद ऐसा ना होता हो, लेकिन अगर आपको किसी के प्यार का अहसास है या आप किसी से प्रेम करते हैं तो यह आपको निश्चित तौर पर एक सकारात्मक दृष्टिकोण देगा। समस्या हल ना भी हो लेकिन उनका सामना करना आपको सहज और आसान लगने लगता है। अगर आप अपनी सेहत का ख्याल रखने में लापरवाही बरतेंगे तो कोई आपकी इस कमी को पूरा करेगा। निश्चित तौर पर यह आपको चिंता मुक्त और दबाव रहित रखेगा। यही वजह है कि आप खुद को पहले से अधिक स्वस्थ और खुशहाल महसूस करेंगे। अगर यह भी काम न करे और आपको महसूस हो कि आपका पारा चढ़ रहा है, तो एक तरफ हो जाएँ और अपने आपसे बातें करने लगें ताकि शांत हो सकें। गुस्से के कारण व्यक्ति बहुत चिड़चिड़ हो जाता है और व्यक्ति अकसर तनाव में रहने लगता है। गुस्सा आने पर उसके कारणों पर गौर करें कि क्या कारण इतना बड़ा है कि आपका गुस्सा करना जायज है या फिर आप छोटी सी बात को अपने गुस्से की वजह से बहुत आगे बढ़ा रहे हैं। गुस्सा कम करने या नियंत्रण करने के लिए जरूरी है कि आप अपनी इच्छा को प्रबल करें और दृढ़ निश्च य लें कि कुछ भी करके गुस्सा पर नियंत्रण करना है।जब तक गुस्सा नियंत्रण में न आ जाए, तब तक फिर से ड्राइविंग न करें। आदमी आवेश में आकर ग़लत फ़ैसले ले ही लेता है और फिर जब उसे अहसास होता है कि वह गुस्से में आकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार बैठा है। अगर आप किसी ऐसी स्थिति में फँस गए हैं कि उस पर विशेष कुछ नहीं कर सकते हैं, तो उससे लड़ने की बजाए रिलेक्स करने का प्रयास करें।

राहुल कुमार सिंह (राजनीतिक लेखक) शोभी डुमरा, आरा, बिहार ( भारत )

सृष्टि व मनुष्य से बड़ी जाति नहीं………………….. द्वारा राहुल कुमार सिंह , राजनीतिक लेखक, शोभी डुमरा, आरा,बिहार( भारत ) Bihar Top News, Bihar Current News, Today News Patna
सृष्टि में व्याप्त इस ब्रह्म-अनुभूति के और इस सृष्टि के रूप आकार वाले जीवों के अतिरिक्त उस ईश्वर का कोई रूप, रंग, रेखा तथा पहचान नहीं है।वह ऐसा परम तत्व है कि उसे आत्मा की आंखों से ही देखा अनुभव किया जा सकता है।आप इंसान और इंसान में जन्मजात भेद को समर्थन करते हैं, आप अन्याय का समर्थन करते हैं, आप सामाजिक विद्वेष का समर्थन करते हैं, आप असमानता का समर्थन करते हैं और अगर आपको इन सब का ज्ञान ना भी हो तो अंजाने ही आप इन सब बातों का पालन करके इसे आगे बढ़ाते जाते हैं। मनुष्य की दो ही जात हैं- स्त्री और पुरूष, औरत और मर्द। स्वस्थ लोकतंत्र में जातिवाद का कोई स्थान नहीं है। लोकतंत्र और जातिवाद एक साथ नहीं रह सकते। हमारे यहां भी लोकतंत्र खोखला हो रहा है। जातिवाद का नाग फन फैला रहा है। लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए सभी को प्रयास करने होंगे। आज बदलते परिवेश में जाति प्रथा व जातिवाद का कोई औचित्य, उपयोगिता व आवश्यकता नहीं है। जातिवाद प्रजातंत्र को पंगु और राष्ट्र को पराभव व पराधीनता के पथ पर ले जा रहा है। जब तक जातिवाद का अंधेरा नहीं मिटेगा, तब तक राष्ट्रीय एकता का सूरज उदय नहीं हो पाएगा। अन्तत: “आम आदमी” को ही लोकतंत्र को लीलते जातिवाद के असुर “रक्त बीज” का वध करना होगा। जातिवाद दो प्रजातियों में मतभेद के होने की वज़ह से होने वाला विवाद है।विश्व मे भारत के अतिरिक्त किसी भी देश मे जातिवाद नही है।भारत मे जातिवाद का आरम्भ लगभग 6 ठी शताब्दी मे हुआ। जब से वोट की राजनीति ने जातिवाद को आधार बनाया, तब से जातिवाद व जातिगत विद्वेष बढा है। भारत देश के विकास के लिये यह अनिवार्य हो गया है कि जातिवाद को समाप्त करने का सामूहिक प्रयास किया जाये। भारत में धर्म, भाषा या संस्कृति किसी की भी चर्चा बिना कबीर की चर्चा के अधूरी ही रहेगी।कबीर सन्त कवि और समाज सुधारक थे।काशी के इस अक्खड़, निडर एवं संत कवि का जन्म लहरतारा के पास सन् 1398 में ज्येष्ठ पूर्णिमा को हुआ। जुलाहा परिवार में पालन पोषण हुआ, संत रामानंद के शिष्य बने और अलख जगाने लगे।। वे एक ही ईश्वर को मानते थे और कर्मकाण्ड के घोर विरोधी थे। अवतार, मूर्त्ति, रोज़ा, ईद, मसजिद, मंदिर आदि को वे नहीं मानते थे।कबीर ने अपने पंथ को इस ढंग से सुनियोजित किया जिससे मुस्लिम मत की ओर झुकी हुई जनता सहज ही इनकी अनुयायी हो गयी। उन्होंने अपनी भाषा सरल और सुबोध रखी ताकि वह आम आदमी तक पहुँच सके। इससे दोनों सम्प्रदायों के परस्पर मिलन में सुविधा हुई।कबीर सिकन्दर लोदी के समकालीन थे।प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन ने कबीर के राम एवं कबीर की साधना के संबंध में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा है : ” कबीर का सारा जीवन सत्यर की खोज तथा असत्यन के खंडन में व्यचतीत हुआ। कबीर की साधना ‘‘मानने से नहीं, ‘‘जानने से आरम्भज होती है। वे किसी के शिष्या नहीं, रामानन्द। द्वारा चेताये हुए चेला हैं।उनके लिए राम रूप नहीं है, दशरथी राम नहीं है, उनके राम तो नाम साधना के प्रतीक हैं। उनके राम किसी सम्प्र दाय, जाति या देश की सीमाओं में कैद नहीं है। प्रकृति के कण-कण में, अंग-अंग में रमण करने पर भी जिसे अनंग स्प,र्श नहीं कर सकता, वे अलख, अविनाशी, परम तत्वा ही राम हैं। उनके राम मनुष्यर और मनुष्यग के बीच किसी भेद-भाव के कारक नहीं हैं। वे तो प्रेम तत्वश के प्रतीक हैं। भाव से ऊपर उठकर महाभाव या प्रेम के आराध्यर हैं। कबीर सधुक्कड़ी भाषा में किसी भी सम्प्रदाय और रूढ़ियों की परवाह किये बिना खरी बात कहते थे। कबीर ने हिंदू-मुसलमान सभी समाज में व्याप्त रूढ़िवाद तथा कट्टरपंथ का खुलकर विरोध किया।काशी में प्रचलित मान्यता है कि जो यहॉ मरता है उसे मोक्ष प्राप्त होता है। रूढ़ि के विरोधी कबीर को यह कैसे मान्य होता। काशी छोड़ मगहर चले गये और सन् 1518 के आस पास वहीं देह त्याग किया। मगहर में कबीर की समाधि है जिसे हिन्दू मुसलमान दोनों पूजते हैं।साधु संतों का तो घर में जमावड़ा रहता ही था। कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे- ‘मसि कागद छूवो नहीं, कलम गही नहिं हाथ।’उन्होंने स्वयं ग्रंथ नहीं लिखे, मुँह से भाखे और उनके शिष्यों ने उसे लिख लिया। आप के समस्त विचारों में रामनाम की महिमा प्रतिध्वनित होती है ।कबीर को शांतिमय जीवन प्रिय था और वे अहिंसा, सत्य, सदाचार आदि गुणों के प्रशंसक थे। अपनी सरलता, साधु स्वभाव तथा संत प्रवृत्ति के कारण आज विदेशों में भी उनका समादर हो रहा है।वृद्धावस्था में यश और कीर्त्ति की मार ने उन्हें बहुत कष्ट दिया। उसी हालत में उन्होंने बनारस छोड़ा और आत्मनिरीक्षण तथा आत्मपरीक्षण करने के लिये देश के विभिन्न भागों की यात्राएँ कीं इसी क्रम में वे कालिंजर जिले के पिथौराबाद शहर में पहुँचे। वहाँ रामकृष्ण का छोटा सा मन्दिर था। वहाँ के संत भगवान् गोस्वामी के जिज्ञासु साधक थे किंतु उनके तर्कों का अभी तक पूरी तरह समाधान नहीं हुआ था। संत कबीर से उनका विचार-विनिमय हुआ। कबीर की एक साखी ने उन के मन पर गहरा असर किया-‘बन ते भागा बिहरे पड़ा, करहा अपनी बान। करहा बेदन कासों कहे, को करहा को जान।।’वन से भाग कर बहेलिये के द्वारा खोये हुए गड्ढे में गिरा हुआ हाथी अपनी व्यथा किस से कहे ?सारांश यह कि धर्म की जिज्ञासा सें प्रेरित हो कर भगवान गोसाई अपना घर छोड़ कर बाहर तो निकल आये और हरिव्यासी सम्प्रदाय के गड्ढे में गिर कर अकेले निर्वासित हो कर असंवाद्य स्थिति में पड़ चुके हैं।मूर्त्ति पूजा को लक्ष्य करते हुए उन्होंने एक साखी हाजिर कर दी-पाहन पूजे हरि मिलैं, तो मैं पूजौं पहार।वा ते तो चाकी भली, पीसी खाय संसार।।अनेक परंपरागत कृत्य अथवा नियम निरंतर जनविश्वास का संबल पाते रहने के कारण चलन या रूढ़ि मान लिए जाते हैं। इनके वास्तविक अर्थ या मूल तात्पर्य का पता किसी को नहीं होता, तो भी विशेष अवसरों पर लोग इनका पालन करते ही हैं। एक इंसान के नाम के साथ लगा सर-नेम उसके धर्म, वर्ण, जाति, समाज मे उसका स्थान, उसके साथ किया जा सकने वाला बर्ताव का लेवेल -उसका चयन आदि तय करता है।सवाल वही वर्ण और जाति जैसी घ्रनित व्यवस्था कब, क्यों और किसने शुरू की , क्या हम बिना जाति जाने व्यवहार नहीं कर सकते ? क्या बिना जातिसूचक सर-नेम के हमारा कोई वजूद नही? क्या हम इसके इस्तेमाल को बंद करके सिर्फ़ अपने नाम से काम नहीं चला सकते? क्या हम अपने नाम को अपने बर्ताव, व्यवहार, गुण और काम से पहचान और सम्मान नहीं दिलवा सकते?

सृष्टि व मनुष्य से बड़ी जाति नहीं………………….. द्वारा राहुल कुमार सिंह(Rahul Kumar Singh) , राजनीतिक लेखक(Political Writer), शोभी डुमरा, आरा,बिहार( भारत )

सृष्टि व मनुष्य से बड़ी जाति नहीं………………….. द्वारा राहुल कुमार सिंह(Rahul Kumar Singh) , राजनीतिक लेखक(Political Writer), शोभी डुमरा, आरा,बिहार( भारत )

जब बेवजह भारतवर्ष का समाज काम के आधार पर वर्णों मे बाँटा गया, तो ये कहा गया की जन्म से सब अज्ञानी पैदा होते हैं और जैसे जैसे वो गुण प्राप्त करते हैं और जो काम अपनाते हैं, वैसे वैसे उनका वर्ण तय होता है। पर ये नियम कभी उपयोग मे लाया गया हो, ऐसा लगता नहीं. कार्य जन्म से बाँटकर आगे भी जन्मजात कर दिए गये और जातियाँ कार्य पर आधारित न होकर जन्म पर आधारित कर दी गयीं।इस देश का सबसे पुराना और सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है, और वो है वर्णव्यवस्था के नाम पर समाज का बटवारा और उससे उपजा जातिवाद रूपी सामाजिक भ्रष्टाचार, जिसने जन्म से लोगों के सम्मान का घोटाला किया, और इस घोटाले से हज़ारो साल तक लाखों और करोड़ो लोग ना केवल सामाजिक रूप से बहिष्कृत कर दिए गये बल्कि अत्यंत विकृत और अमानवीय रूप से उनका शोषण और उत्पीड़न होता रहा! इनमें से बहुतों का पालन न करने से जहाँ केवल सामाजिक अप्रतिष्ठा की आशंका रहती हैं, वहां कुछ ऐसे भी चलन होते हैं जिन्हें पूरा न करने पर दैवी विपत्तियों अथवा विभिन्न प्रकार की हानियों का भय रहता है। कुछ रूढ़ियाँ इस प्रकार की भी होती हैं जिन्हें छोड़ देने पर न तो प्रतिष्ठा को किसी प्रकार का धक्का लगता है और न ही जिनका पालन न करने से किसी दैवी विपत्ति की आशंका रहती है। तो भी अवसर उपस्थित होने पर लोग उनका पालन यंत्रवत्‌ पीढ़ी-दर-पीढ़ी करते चलते हैं। जन्म, मरण, विवाह, पुत्रोत्पत्ति तथा अन्यान्य पुण्य अवसरों एवं विधि संस्कारों के समय किए जानेवाले विभिन्न कृत्यों को इनके अंतर्गत गिना जा सकता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विधुर का विवाह कन्या से पहले अर्कवृक्ष के साथ कर दिया जाता है ताकि उक्त व्यक्ति की दूसरी पत्नी के मरने का भी यदि विधिविधान हो तो उसके स्थान पर अर्कवृक्ष ही नष्ट हो, नई वधू नहीं। विवाह के अवसर पर वरयात्रा के समय वर की माता कुएँ में पैर लटकाकर बैठ जाती है और वहाँ से वह तभी हिलती है जब उसका पुत्र उसके दूध का मूल्य चुका देता है। कदाचित्‌ इस चलन के पीछे युद्ध जीतने के बाद ही कन्या को प्राप्त कर सकने की मध्यकालीन उस सामंती प्रथा का अवशेष काम कर रहा होता है जिसके अनुसार माता विवाह के पहले पुत्र से वचन लेती थी कि वह वधू को साथ लेकर ही लौटेगा, खाली हाथ नहीं। जब से आरक्षण का जिन्न बोतल से बाहर निकला है, जातिगत विद्वेष चरम पर है और जातियां एक दूसरे के खिलाफ लामबंद हो रही हैं। सत्ता पर काबिज होने के लिए राजनीतिक दलों ने “सोशल इंजीनियरिंग के बहाने जातिवाद को आधार बनाया, तो रातों-रात जातिगत महासभाएं व उनकी सेनाएं आ गईं और उनके रहनुमा खडे हो गए। राजनीतिक दल सत्ता पाने के लिए जातिगत संगठनों से सौदाबाजी में फंस रहे हैं। वोट की राजनीति जातिवाद को बढा रही है, जिससे सामाजिक समरसता, राष्ट्रीयता की भावना व लोकतंत्र की अवधारणा को पलीता लग रहा है। भ्रष्टाचार का बोलबाला होने लगा, तब चौधरी चरण सिंह ने कहा था कि यह “कास्ट” और “करप्शन” मुल्क को ले डूबेगा और आज यह भयानक स्थिति सबके सामने है। हद तब हो गई, जब महापुरूषों को भी जातिवाद में बांधा जाने लगा। आज यदि महाराणा प्रताप राजपूत, महात्मा फूले माली, देवनारायण गुर्जर और अम्बेडकर पर दलित एकाधिकार जताएं, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, लोक नायक जयप्रकाश नारायण, लाल बहादुर शास्त्री को कायस्थ ही याद करें और वैश्य बन्धु महात्मा गांधी को भी जाति के चश्मे से देखें, तो समूचे राष्ट्र का सिर शर्म से झुकेगा ही। ज्यों-ज्यों शिक्षा का प्रचार हुआ, कायदे से रूढियों व जाति प्रथा को समाप्त हो जाना चाहिए था पर जातिगत व्यवस्था न टूटी न बिखरी और न ही सुधरी, बस समाज बिखर गया और राष्ट्रीय भावना गौण हो गई। लोकतंत्र की छाती पर जातिवादी शैतान सवार हो गया, जिसे वोट की राजनीति व व्यक्तिगत स्वार्थ ने दूध पिलाया। आज भी, समाज के अन्तस में घुला हुआ, मानव के मन में रमा हुआ, मनुष्य की रग-रग में बसा हुआ, जातिवाद का जहर, अभी पूर्णतया मिटा नहीं, मरा नहीं। आज दलित का ही धर्मान्तरण होता है, और शुद्धिकरण के नाम पर पुन: धर्मान्तरण होता है। गरीबी तो इस धर्मान्तरण के पीछे है ही, साथ ही साथ हिन्दू धर्म में कमजोर व दलित लोगों की सामाजिक दशा भी इस धर्मान्तरण का एक प्रमुख कारण है। दलितों की यह करूणा राम कहानी सदियों से चली आ रही है।आज, जातिवाद का, अस्पृश्यता का, छुआछूत का विष वृक्ष, विराट वट वृक्ष बनकर अपनी जडों से समग्र देश की धरती को जकड चुका है। सम्पूर्ण राष्ट्र का भाग्य ही जातीयता की ऊंच-नीच से नियंत्रित होता प्रतीत हो रहा है। आज, राष्ट्र की एकता और अखण्डता को अक्षुण्ण रखने के लिए यह अनिवार्य है कि राजनेता एवं जनता, जात-पांत के क्षुद्र स्वार्थ से ऊपर उठकर, समरसता के मंत्र “सं गच्छवं सं वदध्वं (हम कदम से कदम मिलाकर साथ-साथ चलें, हम सुर से सुर मिलाकर साथ-साथ बोलें) का जयघोष करें। वास्तव में चर जगत का वर्गीकरण, मनुष्य और पशु के रू प में है। इन सभी रूढ़ियों या चलनों को “सामाजिक परंपरा’ (सोशल कॉन्वेंशन) की संज्ञा दी जा सकती है। इस सामाजिक परंपरा की तरह संगीत, कला तथा साहित्य अथवा काव्य आदि के क्षेत्रों में भी समय-समय पर कुछ अभिप्राय प्रयोग किए जाते हैं। प्रयोग धीरे-धीरे चलन का रूप धारण करके रूढ़िगत हो जाते हैं।

राहुल कुमार सिंह ( राजनीतिक लेखक ) शोभी डुमरा, आरा, बिहार ( भारत )

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I am a Political Writer.My native place is Sobhi Dumra,District Ara Bhojpur,Bihar.I am inspired from the life and thought of Swami Vivekananda.Bihar is growing with respect of Politics,Health,Pollution Control,Roads,Administration etc.Particularly I appreciate CM Sri Nitish Kumar good governance in Bihar.I also urge to the Youth of Bihar to come forward in the interest of developmental affairs of the Bihar State.
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