किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्वव को प्रभावशाली बनाने में एवं उस व्यक्ति को कामयाबी दिलाने में उसकी याददाश्त का बहुत बड़ा हाथ होता है। जिस व्यक्ति की याददाश्त बहुत हीं कमजोर हो जाती है उसे अपने जीवन में बहुत हीं परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कुछ लोग असफलताओं को साथ में ढोने के आदी होते हैं और उसका असर उनके वर्तमान पर भी पड़ता रहता है यानी वे भूतकाल की असफल स्मृतियों को वर्तमान में भी याद करते रहते हैं। इस कारण वे वर्तमान में जो भी कार्य कर रहे हैं, उस पर ध्यान केंद्रित ही नहीं कर पाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में स्मृतियों की लंबीफेहरिस्त होती है। इन स्मृतियों में सफलता-असफलता, सुख-दुख सभी कुछ शामिल रहता है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी स्मृतियों को लेकर संजीदा रहता है और उसे लगता है कि वह अपनी स्मृतियों को याददाश्त में हमेशा बनाए रखे। ऐसा करना ठीक भी है क्योंकि इससे व्यक्ति अच्छे-बुरे दिन की तुलना करता है। स्मृति भुलाने का मतलब है, उन स्थितियों को कुबूल कर लेना जिन्होंने आपको आहत किया हो। यह मान लेना कि आपने उन स्थितियों में वह किया जो आप कर सकते थे और कुबूल कर लेना कि अब उसमें कोई सुधार नहीं किया जा सकता। स्मृति को भुलाने का मतलब खुद को बीते वक्त में की हुई गलतियों के लिए माफ कर देना है। उस उधेडबुन से बाहर निकलना कि आप क्या कर सकते थे या क्या नहीं करना चाहिए था। अगर आप अपनी गलतियों से डील कर रहे हैं या कोई हताशा का दौर देख रहे हैं तो आगे बढने के लिए खुद को माफ करना जरूरी हो जाता है। स्मृति को भूलने का मतलब यह भी है कि आपका अपनी भावनाओं पर नियंत्रण है और आप खुद को बीते हुए दुखद समय से बाहर निकालने के लिए वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं। किसी दुखद रिश्ते या घटना के गम से बाहर निकलकर जीवन को आगे बढाना चाहते हैं। स्मृति भुलाने का मतलब है कि आप समय के चक्के की रफ्तार को कुबूल करते हैं। स्मृति भुलाने का मतलब है कि आप नए कनेक्शंस बना रहे हैं। हालांकि इसके लिए जरूरी नहीं कि आप नए लोगों से संपर्क में आएं बल्कि जरूरी यह है कि आप नए ढंग से रिश्तों को डील करें। अपने दोस्तों के साथ आउटिंग पर जाना शुरू करें या अपने पडोसियों के साथ सोशलाइज करें। स्मृति भूलने का मतलब है कि आप दुनिया को नए नजरिये से देखने को तैयार हैं।दोस्तों स्मृतियों को ढोने की बजाय नए सपने देखने से आपका स्वयं के प्रति नजरिया भी बदलेगा और आप स्वयं में बदलाव अपने आप देखने लगेंगे। इतना ही नहीं आप स्वयं अपनी तरक्की की कहानी भी लिखेंगे। जिंदगी को टूटने से बचाने के लिए जरूरी है कि हम आग्रही न बनें। सहिष्णुता और लचीलापन हमारी जीवन शैली बने। दुनिया में आदेश की भाषा अधिक चलती है, सुझाव की कम। आदेश में कठोरता, दमन तथा विरोध जैसा भाव झलकता है। अगर हम विनम्रता तथा बुद्धिमत्ता से सुझाव देते हैं और लेते हैं तो जीवन में मधुरता आती है। जो किसी से खुश होने के लिए तैयार नहीं, वह भी खुश हो जाता है और सहजता से आदेश के अनुसार आचरण भी करने लगता है। इसलिए अहिंसक जिंदगी की रचना में सुझाव की भाषा अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी। जिंदगी में सफलता व असफलता मिलने का सिलसिला लगातार चलता रहता है। जिंदगी की वर्तमान संरचना, दशा, दिशा, स्थिति आदि पर व्यापक चिंतन-मंथन किया जाना जरूरी है। आज जिंदगी में बिखराव, असंतुलन, टकराहट, आपसी द्वेष की स्थितियां चिंताजनक हैं। दरअसल हम जिस दुनिया में जी रहे हैं, उसमें सभी लोग एक-दूसरे से अपेक्षा करते हैं कि वे शांत हों, संतुलित हों, मैत्रीपूर्ण हों, सरस व्यवहार वाले हों, किंतु सब शांत- सरस नहीं होते। आश्चर्य तो इस बात का है कि हम स्वयं जैसा चाहते हैं वैसा नहीं जी पाते। कई व्यक्ति ऐसे भी होते हैं, जो भूतकाल की असफलताओं से सीख लेकर वर्तमान को बेहतर बनाते हैं। पर कई लोग ऐसे भी होते हैं, जो इस भूत को हरदम अपने साथ ढोते रहते हैं और अपनी असफलता के कारण ही वे सफलता की आहट को भी पहचान नहीं पाते। जीवन में नए फोकल पॉइंट्स ढूंढें, तभी आप स्मृति के चक्रव्यूह से निकल कर नई दिशा में अपनी सोच को केंद्रित कर सकते हैं। मनोवैज्ञानिक समीर पारेख कहते हैं, फर्ज कीजिए किसी स्त्री ने अपने बच्चे को खो दिया हो और उस ट्रॉमा से निकलने के लिए वह कोई क्रेश या बच्चों से संबंधित एनजीओ खोल ले। इस तरह से वह स्त्री खुद को व्यस्त रखते हुए अपने जीवन में नए रास्ते तलाश सकती है।आमतौर पर हम स्मृति से इसलिए चिपके रह जाते हैं क्योंकि हम उसे कुबूल नहीं कर पाते। यदि आपके मन पर कोई बात लग गई हो तो उसके बारे में गहराई से सोचें और कुबूल करें कि वाक्या गुजर चुका है। अब आप कुछ नहीं कर सकते और आगे बढ जाएं।कोई बुरी घटना होने के साथ ही मन में उधेडबुन सी शुरू हो जाती है। स्मृति से निकलना है तो उस उधेडबुन को छोड दें।मानना सीखें कि जीवन की सभी घटनाएं शिक्षाप्रद होती हैं और उनसे शिक्षा लेना सीखें। कहावत है, बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि ले। यानी स्मृति भुला कर भविष्य की ओर ध्यान केंद्रित करें। जिंदगी का बहाव किसी के लिए नहीं रुकता। इसमें बहना ही प्रकृति है। जितनी जल्दी यह मान लिया जाए, उतना ही खुद के लिए, अपने आसपास वालों के लिए और अपने माहौल के लिए अच्छा है।
स्मृतियों की दुनिया कभी तो सपनीली होती है, लेकिन कई बार स्मृतियों के शूल मन में इस कदर चुभ जाते हैं कि जिंदगी खत्म सी लगने लगती है। समय थम जाता है और आगे बढने के रास्ते नजर आने बंद हो जाते हैं। किसी के साथ कोई खास घटना घट जाती है, जिसकी स्मृतियों में जिंदगी फंस कर रह जाती है तो कुछ लोग आदतन स्मृतियों के भंवर में उलझे रह जाते हैं। मनोवैज्ञानिकों से बातचीत के आधार पर कहें तो लगभग 80 फीसदी लोगों की पर्सनैलिटी पर अतीत की छाप दिखती है। पर यह स्थिति किसी भी सूरत में इंसान के लिए अच्छी नहीं है।
राहुल कुमार सिंह, राजनीतिक लेखक,शोभी डुमरा, आरा,बिहार ( भारत )